अध्याय 138 इच्छा से अभिभूत

निकोल अपनी आँखें नहीं खोल पा रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसकी पलकें सोने की तरह भारी हो गई हों, चाहे वह कितना भी जोर लगा ले।

उसका मुँह उस विशाल वस्तु से खिंचा जा रहा था, और उसका गला ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह डूब रहा हो। उसके मुँह के कोनों से अनगिनत झाग भी बाहर निकल रहे थे।

जब निकोल को लगा कि वह इस ...

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